मैं ये तो नहीं कहता कि ये मेरे ही घर में बनता है लेकिन इस विधि से बहुत कम घरों में बनता होगा। यह राजस्थान और मालवा (मध्यप्रदेश का एक भाग – इन्दौर, उज्जैन वगैरह) में बनता है। सर्दियां आ रही हैं – इस व्यंजन को पौष्टिक नाश्ते के रूप में भी खा सकते हैं। इसमें पानी का अंश बिल्कुल समाप्त कर दिया जाता है इसलिये इन लड्डूओं को एअर टाइट डिब्बे में एक महीने तक भी रख सकते हैं।
इन्हें कहते हैं मुठिया या चूरमा के लड्डू। नीचे रही बनाने की विधि। यह पोस्ट मैंने दीवाली पर ‘सुनहरी कलम’ ब्लॉग पर पोस्ट की थी। उसी को कापी पेस्ट कर रहा हूँ, ताकि ज्यादा पाठक वर्ग तक पहुँचे।
दीपावली के समय हर घर को कम से कम एक किलो मिठाई तो चाहिए। कभी किसी ने सोचा है कि इतनी बड़ी आबादी के लिए इतनी मिठाई के लिए इतना दूध और शुद्ध घी कहाँ से आयेगा। सबको बाजार में शुद्ध मिठाई कहाँ से मिलेगी। माँग की भरपाई करने के लिए खूब मिलावटी मिठाइयाँ बनतीं हैं। हर साल 5–10% के सैम्पल भरे जाते हैं लेकिन परिणाम क्या वही ढाक के तीन पात।
ऐसे में हम क्यों न अपने ही घर में मिठाई बनायें। हम जब छोटे थे तो हमारी माता जी, मीठी बूँदी, बेसन की बर्फी, गुलाब जामुन वगैरह घर में ही बनातीं थीं।
चलिए आज आपको मैं मुठिया के लड्डू बनाने की विधि बनाता हूँ। इसमें सूखे मेवे (Nuts only – बादाम, काजू और पिस्ता) डालने की मैं ऐसी विधि बताऊँगा कि किसी नेट पर नहीं मिलेगी। यह हमने फरीदाबाद में एक भाटिया परिवार से सीखी थी, वे लोग जैसलमेर के थे। हम अपने घर में ये लड्डू बनाते हैं। दावा करता हूँ ऐसे लड्डू हल्दीराम भी नहीं बना सकता।
सामग्री:—
- रवीला गेहूँ का आटा … … 350 ग्राम
- बेसन … … … … … … . 150 ग्राम
- दूध – आटा और बेसन को गूँधने के लिए 250मिली
- देशी घी … … … … … … 1 किलो
- चीनी पिसी हुयी … … … .. 500 ग्राम
- बादाम गिरी … … … … … 200 ग्राम
- काजू … … … … … … … 200 ग्राम
- पिस्ता … … … … … … .. 100 ग्राम
- इलायची … … … … … … 10 ग्राम
विधि:—
एक बड़ी पराँत में रवीला आटा लें। वैसे हमारे यहाँ चक्की पर रवीला या मोटा आटा मिल जाता है। लेकिन न मिले तो 250 ग्राम सादा आटा ले लें और उसमें 100 ग्राम सूजी मिला लें। इसी में बेसन भी मिला लें। बेसन आप्सनल है। इससे स्वाद ज्यादा आता है। तीनों को ठीक से मिलाकर उसमें करीब 200 ग्राम घी को पिघला कर मिला लें। फिर इस मिश्रण को हाथ से अच्छी तरह मिला लें। अब गुनगुने दूध से थोड़ा थोड़ा डाल कर जितना सख्त हो सके उतना सख्त गूँध लें। बस उसकी मुठियाँ जैसी बनने लगना चाहिए। नीचे चित्र देखिये।
चित्र देखकर समझ में आ गया होगा कि कैसे करना है।अब कड़ाही चढ़ाहिये चूल्हे पर। उसमे आधा किलो घी डालिये। गर्म होने के बाद थोड़ा ठन्डा हो जाने दें फिर मुठियाँ सेकते जाँयें। धीमी आँच पर सेकना है कचौड़ी जैसे। सेकते जाईये , निकालती जाईये। जो सिक जायें उन्हें थोड़ा ठंडा होने के बाद मिक्सी में पीस लीजिये और मोटी छलनी से छान लीजिये। इस तरह से सिका हुआ दरदरा रवा मिल जायेगा। चित्र देखिये।
अब बादाम को पानी में 5 मिनिट उबाल लीजिये। पानी में से निकाल कर उनका छिलका आसानी से उतर जायेगा।इनको कड़ाही में बचे हुए घी में तल कर निकाल लीजिये। काजू को भी घी में तल कर निकाल लीजिये। पिस्ता को चाकू से बारीक बारीक कतर लीजिये।
तले हुए बादाम को मिक्सी में घुमाकर दरदरा करके मिश्रण में मिला दीजिए। ऐसे ही काजू को भी मिक्सी में दरदरा करके मिश्रण में मिला दीजिए। अब इसमें पिसी हुयी चीनी और इलायची को छीलकर पीसकर डाल दीजिये। हाथ से सारे मिश्रण को अच्छी तरह मिलाईये। अब बचा हुआ सारा घी कड़ाही में पिघला कर इस मिश्रण में डाल लीजिये। और अच्छी तरह मिक्स करके लड्डू बनाने लगिये। जिस साइज के लड्डू अच्छे लगें उस साइज के बनाईये। लड्डू बनने में दिक्कत आये तो थोड़ा घी और गरम कर के मिला लीजिये। पानी बिलकुल नहीं छिड़कना है। ना ही चाशनी बनानी है।
अब लोग सोच रहे होंगे कि सूखे मेवे पीस कर डाल दिये, दिख तो रहे नहीं हैं। तो सुनिये हमें ये लड्डू बाजार में शोकेश में रखके बेचने नहीं हैं। घर में खाने हैं और जो उसकी कीमत समझता हो उसे खिलाने हैं। इस बात की गारंटी है ऐसा लड्डू आज 1500/ रुपये किलो में भी कोई नहीं बना के देगा। इतने मैटेरियल का आप खुद बजन कर लो ढाई किलो से कम नहीं निकलेगा (आधा किलो आटा-बेसन, आधा किलो चीनी, आधा किलो सूखे मेवे, एक किलो घी, हो गया ढाई किलो। देशी घी एक किलो से ज्यादा भी लग सकता है। कोई भी रिफाइंड तेल या डालडा गलती से भी प्रयोग न करें।
ये चित्र – शुचि अग्रवाल (Shuchi Agrawal) जी शैफ की साइट से।
आप चाहें तो लड्डूओं को ऐसा शेप भी दे सकतीं हैं बच्चों को लुभाने के लिए।
बस अब इसी से भगवान को भोग लगाईये और फिर स्वयं को भी भोग लगाईये। पसंद आयें तो टिप्पणियों में बताईयेगा।
नोट – इस विधि में अंजु बोरदिया (Anju Bordia) जी की एक्सपर्ट एडवाइस ली गयी है, वह मालवा इलाके की ही हैं। उन्हें धन्यवाद।
चित्रों का सोजन्य – गूगल से।
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