खीर का उल्लेख पौराणिक भारतीय पाककला पुस्तकों में भी है। खीर को भारत में पूजा-पाठ से लेकर शादी-ब्याह और सभी शुभ अवसरों में बनाने का चलन है।
हमारे घर पर हर शुभ अवसर पर सत्यनारायण भगवान की कथा होती थी और इसके लिए चावल की खीर भोग के लिए जरूर बनती थी।
एक बात मुख्य है यहाँ कि अगर खीर को कच्चे खाने के साथ बनाया जा रहा है तो पहले दूध उबाला जाता है फिर उसमें धुले चावल डालकर पकाये जाते हैं। इस खीर को शुद्ध माना जाता है और इसे कच्चे खाने (दाल, चावल, रोटी, सब्जी) का हिस्सा माना जाता है।
लेकिन अगर खीर को पक्के खाने के साथ परोसा जाना है जैसे पूड़ी, कचौड़ी आदि तो खीर बनाने के लिए पहले बर्तन में घी गरम किया जाता है उसके बाद इसमें चावल को भूना जाता है फिर उसके बाद इसमें दूध डालकर इसे पकाया जाता है।
यह नियम विशेष रूप से चावल की खीर के लिए है क्योंकि चावल अन्न है। वैसे पारंपरिक रूप से देखें तो खीर शब्द का इस्तेमाल चावल की खीर के लिए ही होता है।
- खीर को स्वादिष्ट बनाने के लिए सबसे जरूरी है कि आप ध्यान रखें कि पकाते समय खीर तली में लगे नहीं। अगर खीर तली में लग जाती है तो पूरी खीर में जलने की महक आ जाती है।
- खीर ज्यादा स्वादिष्ट बनती है जब इसे धीरज से दूध में पकाया जाये। चौथाई कप चावल(चार बड़े चम्मच/ ५० ग्राम) की खीर बनाने के लिए लगभग ५ कप दूध में इसे पकाना होता है। अब इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि खीर बनाने में समय लगता है।
- कंडेंस्ड मिल्क, या फिर मिल्क पाउडर आदि डालने से खीर जल्दी गाढ़ी हो जाती है लेकिन खीर में वो बात नहीं आती।
- चावल की खीर में केसर डालने से इसमें चार चाँद लग जाते हैं। केसर को गुनगुने दूध में भिगो कर अलग रखें। जब खीर तैयार हो जाये तब आंच बंद करने के बाद दूध में भीगी केसर खीर में डालें। ऐसा करने से केसर की खुशबू खीर में बनी रहती है।
- कई लोग खीर में केवड़ा जल भी डालते हैं।
- खीर कोई भी हो लेकिन मेवा और इलायची तो खीर के जोड़ीदार हैं हीं। मेवा का चुनाव आप स्वादानुसार कर सकते हैं।
- कुछ घरों में खीर में विशेष रूप से चिरौंजी डाली जाती है।
मैं चावल के अलावा, सेवई की, मखाने की, बादाम की, लौकी की, रामदाने की, साबूदाने आदि कई स्वाद की खीर बनाती हूँ। व्रत में मुख्य रूप से मखाने की खीर बनाती हूँ जिसमें सिर्फ मेवे के तौर पर बादाम डालती हूँ, इसमें केसर की जरूरत नहीं होती।
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